बातें



बातें ही तो हैं
मेरे पास, हम सब के पास
ना मुझ पर, ना मेरे होने पर
ऐतबार इन शब्दों पर ही तो है।

जो मैं बोलती हूं
जो तुम सुनते हो
कुछ सच, कुछ कल सा
उन्हीं से तो आज हूं, आज है।

ये आंखें, होंट, ये हाथ, ये मन
सब बातों के ही तो गुलाम है 
कहने सुनने का ही तो सारा बवाल है।

बातों का होना, उनका सच होना
बातों का पूरा होना, कभी अधूरा न रहना
यही तो सबका ख़्वाब है।

तो फिर क्यों तुम, मैं, हम सब
इतने लाचार है
कहना ही तो है, सहना ही तो है
आगे बढ़कर भी उन बातों में रहना ही तो है।

कर लेते है सारी बातें
सुन लेते है सारे किस्से
ज़िंदगी बहुत आसान है
आख़िर जो मेरा है, जो तुम्हारा है 
जो सच है हम सबका अपना
वो बातों का ही तो मोहताज है।

© कशिश सक्सेना

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